धरती पर सितारा : गौतम कश्यप
धूल में लिपटे मेरे पैर
और आँखों में नीर
मैं बढ़ा जा रहा था ...
आकाश में छाने लगी थी,
शराब जैसी लाली
हो रही थी स्याह,
धरती पर फैली हरियाली.
गूंजी एक कराह, पुराने धुनों सी
फिर चुप्पी ...
लगा कि सितारा गिरा था
कोमल घास पर
लेकिन, वैसी ही घूमती रही
बेफिक्र धरती.
आकाशगंगा में, छा गई
शोक की लहर
गिरा गया एक पागल सितारा
धरती पर ....
रात में बहक गया था
“चिंतित न होओ,
मैं हूँ न धरती पर
रखूँगा तुम्हारा ख्याल”.
ऊपर से विलखने की
आवाज आई
मानो किसी ने खो दिया हो
अपने प्रीतम को
हमेशा हमेशा के लिए ...
फिर भी, घूमती रही वैसी ही
बेरहम धरती ...
समुद्र ने सांस लिया, जोर से
और पत्थरों से जल टकराए
होने लगा सूर्य उदित
और लोग अभी तक
सोये पड़े थे
थके मांदे ...
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गौतम कश्यप
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