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Showing posts from 2015

बेचैन जिंदगी : गौतम कश्यप

बेचैन जिंदगी : गौतम कश्यप यहाँ हैं कुछ अजीब हवाएं, जो हिला देती है. आशाओं के धागे. जन्म-जन्मान्तर से, मर रहा हूँ, जी रहा हूँ, एल्बम की पुरानी छवियों में, खुद को न ढूंढ पाता हूँ. ऐसा लगता है, कभी-कभी मानो आत्मा है मेरी खाली और मैं चुप-चाप बैठा हूँ, बिना कुछ खाए-पिए, रात्रि-भोजन को ढक दिया मैंने. जल्दीबाजी में नहीं हूँ, कि मोमबत्ती बुझाऊं, और लेट जाऊं. मुझे ना सही, शायद किसी और को हो जरुरत .. 

औरत : वालेरी ब्र्युसोव / Женщине : Валерий Брюсов

औरत :  वालेरी ब्र्युसोव Translated in Hindi by  Gautam Kashyap   तुम औरत, तुम हो किताबों के बीच एक किताब तुम हो लिपटी, भोजपत्र के पन्नों की भांति उस पर अंकित पंक्तियों के अतिरेक शब्द और विचारों में रहती हो, हरदम बौराई. तुम - औरत,  तुम – चुड़ैल की चाय^ ! गर्म इतनी, कि मुंह में न जा पाए; जो पीये आग की लपट, उसकी चीख रुक जाय, सहते हुए यातना, प्रशंसा किये जाय. तुम औरत, तुम हो सही. सदियों से तुमने धारण किये,  सितारों के ताज तुम, हमारे दिल की गहराई में उतर गई बन कर देवी की छवि! हम उठाते हैं, लोहे का जुआ, तुम्हारे लिए हम तोड़ते हैं, पर्वतों को, तुम्हारे लिए  और सदियों से, करते आ रहे हैं प्रार्थना तुम्हारी ही.    -----------------------------   «Женщине» Валерий Брюсов Ты — женщина, ты — книга между книг,  Ты — свернутый, запечатленный свиток;  В его строках и дум и слов избыток,  В его листах безумен каждый миг. Ты — женщина, ты — ведьмовский напиток!  Он жжет огнем, едва в уста проник;  Но п...