ओह, तुम भी क्या चीज हो : गौतम कश्यप
Gautam Kashyap @ monitoring archery target |
ओह, तुम भी क्या चीज हो,
रहता हूँ हमेशा, अनमना तेरे संग.
दिखावा करना नहीं मुझे पसंद,
खराई से उगलता हूँ सच हरदम.
रहता हूँ हमेशा, अनमना तेरे संग.
दिखावा करना नहीं मुझे पसंद,
खराई से उगलता हूँ सच हरदम.
जब कभी हँसता हूँ, मैं उत्साही
तुम्हारे माथे पर बदसूरत झुर्रियां पड़ जाती.
जब होता हूँ शांति की तलाश में लीन,
तुम हो उठती हो बातूनी.
न जाने क्यों, आती है संग – संग,
मेरी प्रसन्नता और तुम्हारी उदासी.
तुम्हारे माथे पर बदसूरत झुर्रियां पड़ जाती.
जब होता हूँ शांति की तलाश में लीन,
तुम हो उठती हो बातूनी.
न जाने क्यों, आती है संग – संग,
मेरी प्रसन्नता और तुम्हारी उदासी.
तेरे बिना, शायद ...
कोई फर्क नहीं पड़ता मुझपर.
मेरा जीवन, मानो सतत सवाल...
और तुम ठहरी मेघशून्य.
कोई फर्क नहीं पड़ता मुझपर.
मेरा जीवन, मानो सतत सवाल...
और तुम ठहरी मेघशून्य.
एक बार फिर लौट आऊंगा,
यदि आई तुम्हें मेरी याद
शक नहीं कि तुम हो मुझसे बेहतर
लगता है न यह हास्यास्पद?
किस्मत का कैसा था यह खेल,
बेमेलो के बीच करने चला था मेल.
====
गौतम कश्यप
यदि आई तुम्हें मेरी याद
शक नहीं कि तुम हो मुझसे बेहतर
लगता है न यह हास्यास्पद?
किस्मत का कैसा था यह खेल,
बेमेलो के बीच करने चला था मेल.
====
गौतम कश्यप
No comments:
Post a Comment