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Mokama, Bihar, India
I am Gautam Kashyap, an Indian citizen currently living in Russia. I earned my master's degree in Russian literature from Saint Petersburg State University and am currently pursuing a Ph.D. in linguistics at South Ural State University. My expertise lies in both oral and written translations, and I am proficient in Russian, English, Hindi, and Sanskrit.

धरती पर सितारा : गौतम कश्यप

धरती पर सितारा : गौतम कश्यप

धूल में लिपटे मेरे पैर
और आँखों में नीर
मैं बढ़ा जा रहा था ...
आकाश में छाने लगी थी, 
शराब जैसी लाली
हो रही थी स्याह,
धरती पर फैली हरियाली.

गूंजी एक कराह, पुराने धुनों सी
फिर चुप्पी ...
लगा कि सितारा गिरा था 
कोमल घास पर
लेकिन, वैसी ही घूमती रही
बेफिक्र धरती.

आकाशगंगा में, छा गई
शोक की लहर
गिरा गया एक पागल सितारा
धरती पर ....
रात में बहक गया था
“चिंतित न होओ,
मैं हूँ न धरती पर
रखूँगा तुम्हारा ख्याल”.

ऊपर से विलखने की
आवाज आई
मानो किसी ने खो दिया हो
अपने प्रीतम को
हमेशा हमेशा के लिए ...
फिर भी, घूमती रही वैसी ही
बेरहम धरती ...

समुद्र ने सांस लिया, जोर से
और पत्थरों से जल टकराए
होने लगा सूर्य उदित
और लोग अभी तक 
सोये पड़े थे
थके मांदे ...
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गौतम कश्यप

तुम और सागर : गौतम कश्यप

तुम और सागर : गौतम कश्यप
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अगर है तुम्हारे अन्दर ठसक
या कठोरता
तो सागर होगा ठरल
और मुस्कुरायेगा
मंद - मंद
दुर्भावनापूर्ण...

अगर है आँखों में गहराई
तो सागर होगा शांत,
निश्छल
उड़ेलेगा अपनी भावनाएं
अनंत लहर,
मधुर स्वर के सहारे

अगर है तुम्हारे अंदर घृणा
तो दूर कर देगा तुम्हें
वैसे ही, जैसे फेंकता है
बलबलाती फेन को
अपने से दूर,
किनारे

अगर हो एकाकी,
तो अन्दर से देगा सहारा.
नाव की भांति
प्रेरित करेगा
आगे बढ़ने को
बीच झंझावातों से.

अगर है समर्पण
तो तपाकर, बनाएगा तुम्हें बादल
और भेजेगा दूर
विशाल नभ में
जहाँ से बरसकर
तुम रच सको  धरती पर खुशियाँ

अगर आप हैं प्यार में ...

अगर आप हैं प्यार में ...
गौतम कश्यप



अगर आप हैं प्यार में ...
तो, सुबह जल्दी उठ सकते हैं
शाम को देर से लौट सकते हैं
प्यार में हैं यदि ..., आप कुछ भी करेंगे...

बाहर ठंढ में सड़क पर दलकेंगे
या गर्म मुलाक़ात के स्वप्न देखेंगे
बनायेंगे, नित नई योजनायें ...
सीमांत से परे विचरेंगे...

कोमल झुर्रियां और बाल पके
नजरअंदाज करेंगे
“अभी शाम है ढली नहीं ...”, ऐसा कुछ गुनगुनायेंगे.
हाथ में हाथ डाले, 
संग संग टहलना, याद करेंगे ..
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गौतम कश्यप

मेरी आत्मा, रुक जाओ, मत मरो : गौतम कश्यप

मेरी आत्मा, रुक जाओ, मत मरो : गौतम कश्यप

Gautam Kashyap @ Palika Stadium, Kanpur

मेरी आत्मा, रुक जाओ, मत मरो
तुमने अच्छे से सीखा है पीड़ित होना,
थोड़ा धैर्य रखो,
अभी ढेरों काम हैं बचे, मिलजुल निपटाने को
मेरी आत्मा, रुक जाओ, मत मरो

खालीपन है कहाँ? बहस मत करो,
करता हूँ कोशिश, कि चोट न पहुंचे तुम्हें
झूठ सुन मत घबड़ाओ,
कहने वालों की मंशा पहचानो
मेरी आत्मा, रुक जाओ, मत मरो

तुम्हारी कसम, जो मुझे न सुनो
ज़रा मुझे सांस तो लेने दो
ताकि मिटा सकूँ, तुम्हारे भीतर पड़े संदेह को
मेरी आत्मा, मुझे ज़रा महसूसो तो
मेरी आत्मा, रुक जाओ, मत मरो
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गौतम कश्यप

Fekete Ország : Babits Mihály

Fekete Ország by Babits Mihály
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हंगारी भाषा में ‘बोबित्स मिहाय’ की इस बोझिल कविता में अद्भुत लय है. मूल भाषा के स्तर का अनुवाद तो मैं नहीं ही कर पाउँगा, लेकिन यदि आप इस कविता को मूल भाषा में सुनेंगे तो महसूसेंगे, मानो धड़धड़ाती हुई रेलगाड़ी आपके सामने से गुजर गई. जब हंगरीवासी इसे जोश-ओ-जूनून से पढ़ते हैं तो कसम से मजा आ जाता है. वैसे आप इसे यूट्यूब पर सुन सकते हैं. इसके लिए आपको दी हुई ‘कड़ी’ पर चूहे से चटका लगाना होगा : https://www.youtube.com/watch?v=elFSyE8LUXE



देखता हूँ स्वप्न, काली धरा का
जहाँ हों, सबकुछ काले
सब कुछ काले
सिर्फ बाहर से ही नहीं...
अस्थि ही नहीं,
अस्थिमज्जा भी काली.
काली
काली, काली, काली
काला नभ, काला समुद्र
काले पेड़, काले घर
काले पशु, काले मानव
काली खुशियाँ, काले दर्द
काले अयस्क, काले पत्थर
काली धरती, काले पेड़
काली, काली, काली दुनिया
........................
(पूरी कविता का अनुवाद नहीं कर रहा हूँ, क्योंकि कवि की दुनिया में आगे भी सबकुछ काले ही मिलने वाले हैं  :)  )
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गौतम कश्यप

ओह, तुम भी क्या चीज हो : गौतम कश्यप

ओह, तुम भी क्या चीज हो : गौतम कश्यप

Gautam Kashyap @ monitoring archery target


ओह, तुम भी क्या चीज हो,
रहता हूँ हमेशा, अनमना तेरे संग.
दिखावा करना नहीं मुझे पसंद,
खराई से उगलता हूँ सच हरदम.
जब कभी हँसता हूँ, मैं उत्साही
तुम्हारे माथे पर बदसूरत झुर्रियां पड़ जाती.
जब होता हूँ शांति की तलाश में लीन,
तुम हो उठती हो बातूनी.
न जाने क्यों, आती है संग – संग,
मेरी प्रसन्नता और तुम्हारी उदासी.
तेरे बिना, शायद ...
कोई फर्क नहीं पड़ता मुझपर.
मेरा जीवन, मानो सतत सवाल...
और तुम ठहरी मेघशून्य.
एक बार फिर लौट आऊंगा,
यदि आई तुम्हें मेरी याद
शक नहीं कि तुम हो मुझसे बेहतर
लगता है न यह हास्यास्पद?
किस्मत का कैसा था यह खेल,
बेमेलो के बीच करने चला था मेल.
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गौतम कश्यप