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Showing posts from November, 2015

बेचैन जिंदगी : गौतम कश्यप

बेचैन जिंदगी : गौतम कश्यप यहाँ हैं कुछ अजीब हवाएं, जो हिला देती है. आशाओं के धागे. जन्म-जन्मान्तर से, मर रहा हूँ, जी रहा हूँ, एल्बम की पुरानी छवियों में, खुद को न ढूंढ पाता हूँ. ऐसा लगता है, कभी-कभी मानो आत्मा है मेरी खाली और मैं चुप-चाप बैठा हूँ, बिना कुछ खाए-पिए, रात्रि-भोजन को ढक दिया मैंने. जल्दीबाजी में नहीं हूँ, कि मोमबत्ती बुझाऊं, और लेट जाऊं. मुझे ना सही, शायद किसी और को हो जरुरत ..