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Mokama, Bihar, India
I am Gautam Kashyap, an Indian citizen currently living in Russia. I earned my master's degree in Russian literature from Saint Petersburg State University and am currently pursuing a Ph.D. in linguistics at South Ural State University. My expertise lies in both oral and written translations, and I am proficient in Russian, English, Hindi, and Sanskrit.

बीमार बच्ची : गौतम कश्यप

बीमार बच्ची
गौतम कश्यप

पीठ है टिकी
और ढुलका है सिर
व्हीलचेयर पर बैठी बच्ची
अचानक से मुस्कुराती है
'आलिक'”को बुलाती है
“आआलीईईइक”
कि आ जाती है माँ, पीछे से,
रुमाल से आंसू पोछते
और पोछ देती है
उसी रूमाल से
बच्ची के मुंह पर फैले लार.
दोनों का चेहरा खिल उठता है
और नन्ही सी उँगलियों को
थाम लेती है माँ.

विभिन्न आकार के मुंह बनाती
चारो तरफ सिर घुमाती
बढ़े जा रही है
माँ व्हीलचेयर को ठेल रही है
क्षण भर दर्द को भूल
बच्ची कुछ गुनगुनाती है
यो यो याकु याकी
ऎसी आवाजें निकालती है,
जो वही समझ पाती है.

अचानक उसकी बोली घरघराती है
शांत हो जाती है बच्ची
एकदम सुस्त ...
फिर बेचैन हो चीखती है
आँखों से आंसू ढुलक पड़ते हैं
रोने लगती है
मां भी रोने लगती है
और उसे गोद में उठा लेती है
उसके मुंह और नाक को पोछ
कलेजे से चिपका लेती है.
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गौतम कश्यप
मैक्स हॉस्पिटल से

बेचैन जिंदगी : गौतम कश्यप

बेचैन जिंदगी : गौतम कश्यप

यहाँ हैं कुछ अजीब हवाएं,
जो हिला देती है.
आशाओं के धागे.
जन्म-जन्मान्तर से,
मर रहा हूँ, जी रहा हूँ,
एल्बम की पुरानी छवियों में,

खुद को न ढूंढ पाता हूँ.
ऐसा लगता है, कभी-कभी
मानो आत्मा है मेरी खाली
और मैं चुप-चाप बैठा हूँ,
बिना कुछ खाए-पिए,
रात्रि-भोजन को ढक दिया मैंने.
जल्दीबाजी में नहीं हूँ,
कि मोमबत्ती बुझाऊं,
और लेट जाऊं.
मुझे ना सही, शायद
किसी और को हो जरुरत .. 

परेशान आत्मा : गौतम कश्यप

परेशान आत्मा : गौतम कश्यप


Gautam Kashyap @ SFUS, University of DELHI


अब सुनने – सुनाने को रहा ही क्या ...
जब “असीम शांति” के बस में भी
न हो “परेशान आत्मा” का उपचार...

कोहनी पर टिक कर, भाग्य के लिए प्रार्थना क्यों करूँ
इससे बेहतर तो आंसुओं को जमीन पर टपकने दूँ
मेरी ही हथेली पर हैं, पड़े मेरे ही खून के छीटे
अब हथेलियों को मसलने से होगा भी क्या...

वे समय, अब न जाने गए कहाँ
कि अब पास रहा न कोई मित्र यहाँ ,
कि रो लूँ उनकी गोद में सर रख
जब हो हर पल घुटन महसूस यहाँ
अब, चाहने को रहा ही क्या..

कहो! आखिर कैसे देखूं सपने
जब वे पल पास ही न रहे
अब प्रयास करूँ तो क्यों करूँ,
कि थोड़ी देर और जियूं...
जबकि आत्मा बैठी हो सजधज कर तैयार,
गुमनाम पथ पर चलने को बेक़रार.

अब तुझे बता कर, होगा क्या यहाँ
एक दिन तो तुम्हें भी, आना ही है वहां.
=====
Gautam Kashyap (04/11/2015)

मत कहो : गौतम कश्यप

मत कहो कि मैंने तुम्हें भुला दिया,
जवानी के गुजरते ही, यादों को मिटा दिया.
मानो, मैंने ही तुम्हें कभी न हो चाहा
प्यार में तड़पता, प्यार को ही भुला दिया ?

मत कहो, कुहरे की भांति सब कुछ हो गया था ख़त्म
कि डॉक्टर नहीं, समय भरता है आहत दिल का जख्म
जब दिल अन्दर से टूट चुका होता है
इंसान भला स्वस्थ कैसे रह सकता है?

हास्यास्पद माफ़ी, को बार - बार मत दुहराओ
अब कुछ भी नहीं बदलेगा, इसे और न सुलगाओ
जीवन, मानो संदेह और त्रुटियों की श्रृंखला
प्यार निभाना, हर किसी के बस का नहीं होता.
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मत कहो : गौतम कश्यप
०३/११/२०१५

Твой светильник любви

Твой светильник любви : Др. Ведь Пракаш Шарма


Др. Ведь Пракаш Шарма и Гаутам Анилович


Это нелегко
что я буду разговаривать
со солнцем
и ты будешь страдать
от его тепла,
Так легко,
Но я буду,
должен сделать это …

Сказала ты мне,
что должен я иметь
огонь внутри меня,
чтобы твой светильник любви
мог гореть.

Я приблизился к солнцу,
Чтобы, получить его огонь
И здесь
ты начала молиться
о дожде
но, все же, я преклоняясь
прошу огонь от солнца.
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Др. Ведь Пракаш Шарма
перевод : Гаутам Анилович