परेशान आत्मा : गौतम कश्यप
अब सुनने – सुनाने को रहा ही क्या ...
जब “असीम शांति” के बस में भी
न हो “परेशान आत्मा” का उपचार...
कोहनी पर टिक कर, भाग्य के लिए प्रार्थना क्यों करूँ
इससे बेहतर तो आंसुओं को जमीन पर टपकने दूँ
मेरी ही हथेली पर हैं, पड़े मेरे ही खून के छीटे
अब हथेलियों को मसलने से होगा भी क्या...
वे समय, अब न जाने गए कहाँ
कि अब पास रहा न कोई मित्र यहाँ ,
कि रो लूँ उनकी गोद में सर रख
जब हो हर पल घुटन महसूस यहाँ
अब, चाहने को रहा ही क्या..
कहो! आखिर कैसे देखूं सपने
जब वे पल पास ही न रहे
अब प्रयास करूँ तो क्यों करूँ,
कि थोड़ी देर और जियूं...
जबकि आत्मा बैठी हो सजधज कर तैयार,
गुमनाम पथ पर चलने को बेक़रार.
अब तुझे बता कर, होगा क्या यहाँ
एक दिन तो तुम्हें भी, आना ही है वहां.
=====
Gautam Kashyap (04/11/2015)
Gautam Kashyap @ SFUS, University of DELHI |
अब सुनने – सुनाने को रहा ही क्या ...
जब “असीम शांति” के बस में भी
न हो “परेशान आत्मा” का उपचार...
कोहनी पर टिक कर, भाग्य के लिए प्रार्थना क्यों करूँ
इससे बेहतर तो आंसुओं को जमीन पर टपकने दूँ
मेरी ही हथेली पर हैं, पड़े मेरे ही खून के छीटे
अब हथेलियों को मसलने से होगा भी क्या...
वे समय, अब न जाने गए कहाँ
कि अब पास रहा न कोई मित्र यहाँ ,
कि रो लूँ उनकी गोद में सर रख
जब हो हर पल घुटन महसूस यहाँ
अब, चाहने को रहा ही क्या..
कहो! आखिर कैसे देखूं सपने
जब वे पल पास ही न रहे
अब प्रयास करूँ तो क्यों करूँ,
कि थोड़ी देर और जियूं...
जबकि आत्मा बैठी हो सजधज कर तैयार,
गुमनाम पथ पर चलने को बेक़रार.
अब तुझे बता कर, होगा क्या यहाँ
एक दिन तो तुम्हें भी, आना ही है वहां.
=====
Gautam Kashyap (04/11/2015)
No comments:
Post a Comment