Saturday, June 07, 2025

ब्रेस्त किले की शौर्यगाथा - सिरगेई अलिक्स्येफ़/Брестская крепость: Сергей Алексеев/


ब्रेस्त किले की शौर्यगाथा - सिरगेई अलिक्स्येफ़

मूल रूसी से अनुवाद
गौतम कश्यप




सीमा पर अटल खड़ा है ब्रेस्त का किला, एक प्राचीन गढ़, जिसके पत्थरों में शौर्य और बलिदान की गाथाएँ साँस लेती हैं। जंग का पहला दिन ही था, जब फासिस्टों ने इस पर प्रचंड हमला बोला था। किन्तु यह किला साधारण नहीं था; यह था वीरता का प्रतीक। फासिस्टों के तूफ़ानी हमले इसे डिगा न सके। पराजय स्वीकार कर, वे किले को पीछे छोड़, इसके दाएँ-बाएँ से आगे बढ़ गए।

फासिस्टों का जुल्म बढ़ता गया। मीन्सक, रीगा, ल्बोफ़, लूत्स्क—हर ओर खूनी जंग छिड़ी थी। फिर भी दुश्मन के कब्जे वाले इस इलाके के बीचों-बीच, ब्रेस्त का किला अडिग खड़ा रहा। इसके शूरवीर रक्षक, मानो मृत्यु को चुनौती दे रहे थे, अपनी हर साँस युद्ध को अर्पित कर रहे थे।

किले की स्थिति अत्यंत विकट थी। गोला-बारूद समाप्ति की ओर था, भोजन की बेहद कमी थी, और सबसे कठिन संकट—पानी का घोर अभाव। बाहर चारों ओर बूग और मुखावेत्स नदियाँ, धाराएँ, नहरें, पानी से लबालब, मगर किले के भीतर एक-एक बूँद पानी को तरसते सैनिक। बाहर का पानी दुश्मन की गोलीबारी की जद में था। एक घूँट पानी की कीमत थी—जिंदगी से भी कहीं ज़्यादा।

"पानी!"

"पानी!"

"पानी!"

यह आर्तनाद किले की प्राचीरों से टकराता, आसमान में गूँजता।

एक वीर सैनिक नदी की ओर दौड़ा। वह कुछ कदम ही चला था कि दुश्मन की गोली ने उसे ज़मीन पर गिरा दिया। समय बीता, दूसरा सैनिक आगे बढ़ा, वह भी शहीद हुआ। तीसरे ने हिम्मत की, मगर वह भी लौट न सका।

पास ही, एक बंदूकची जमीन पर लेटा, अपनी मशीन गन से आग बरसा रहा था। गोली पर गोली, दुश्मन को पीछे धकेल रही थी। अचानक, मशीन गन खामोश हो गई। युद्ध की प्रचंड तपिश में वह इतनी गर्म हो चुकी थी कि अब उसे भी पानी की जरूरत थी। उसे ठंडा रखने वाले शीतलन कक्ष का पानी भाप बनकर उड़ चुका था। 

बंदूकची ने नदी की ओर दृष्टि डाली, फिर अपने सहयोद्धाओं को देखा। "जो होगा, देखा जाएगा," उसने मन ही मन संकल्प लिया। वह पेट के बल रेंगने लगा, सर्प की तरह जमीन से चिपककर, धीरे-धीरे नदी की ओर बढ़ता गया। हर कदम पर मौत मँडरा रही थी, मगर वह रुका नहीं। आखिरकार, वह नदी के किनारे पहुँच ही गया। उसने अपना हेलमेट निकाला, बाल्टी की तरह उसका इस्तेमाल करते हुए उसमें पानी भरा, और रेंगते हुए वापस लौटने लगा।

हर पल खतरे से खेलता, वह अपने साथियों के पास लौट आया था। 

"सच्चा वीर! पानी ले आया!" सभी ने हर्षनाद किया।

सैनिक हेलमेट में भरे पानी को एकटक निहार रहे थे। प्यास से उनकी आँखें धुँधला रही थीं। उन्हें नहीं पता था कि यह पानी वह सैनिक अपनी मशीन गन के लिए लाया है। उनकी निगाहें उम्मीद से तक रही थीं—शायद एक घूँट उन्हें भी मिल जाये।

बंदूकची ने उनके शुष्क होंठों और प्यास से जलती आँखों की ओर देखा। "आओ," उसने कहा।

सैनिक आगे बढ़े, मगर तभी एक आवाज गूँजी, "भाइयों, यह पानी हमें नहीं, घायलों को चाहिए!"

सब रुक गए। "हाँ, हाँ, बिल्कुल, घायलों के लिए!"

"सही कहा, इसे तहखाने में ले जाओ!"

एक सैनिक हेलमेट को लेकर तहखाने की ओर बढ़ा, जहाँ घायल पड़े सैनिक कराह रहे थे। "भाइयों, पानी..." उसने पुकारा।

सबके सिर आवाज की ओर मुड़े। चेहरों पर खुशी की लहर दौड़ गई। सैनिक ने एक प्याली में सावधानी से पानी डाला और घायलों की ओर देखने लगा। उसकी नजर एक सैनिक पर पड़ी, जो पट्टियों में लिपटा, खून से लथपथ सना था।

"लो," उसने प्याली उसकी ओर बढ़ाई।

घायल सैनिक ने हाथ बढ़ाया, किंतु रुक गया। "नहीं, नहीं,  मुझे नहीं," उसने कहा। "इसे बच्चों के पास ले जाओ।"

"बच्चों को! बच्चों को!" तहखाने में आवाजें गूँज उठीं।

ब्रेस्त किले में सैनिकों के साथ उनकी पत्नियाँ और बच्चे भी थे। सैनिक पानी लेकर बच्चों के पास पहुँचा। "आओ, पास आओ," उसने कहा। "लाइन में लगो।" फिर, एक जादूगर की भाँति उसने पीठ के पीछे से हेलमेट निकाला।

बच्चों की आँखें चमक उठीं—हेलमेट में पानी था! "पानी!" वे सैनिक की ओर दौड़े।

सैनिक ने प्याली में थोड़ा पानी डाला और एक नन्हे बच्चे की ओर बढ़ाया। "ये लो," उसने कहा।

बच्चे ने सैनिक को देखा, फिर पानी को। "इसे पापा को दो," उसने कहा। "वे वहाँ लड़ रहे हैं।"

"पी लो, यह तुम्हारे लिए है," सैनिक ने मुस्कुराकर कहा।

"नहीं,नहीं" नन्हा बच्चा सिर हिलाता रहा। "इसे पापा को दे आओ।" उन्होंने एक बूँद भी पानी नहीं पिया है।

उसके बाद क्या, बाकी बच्चों ने भी पानी को ठुकरा दिया।

सैनिक वापस अपने साथियों के पास लौटा। उसने बच्चों और घायलों के त्याग की कहानी सुनाई। बंदूकची ने हेलमेट लिया और पानी का इस्तेमाल अपनी बंदूक को ठंडा करने में कर लिया। बंदूक फिर से गरज उठी, दुश्मन पर गोलियाँ बरसाने लगी।

बंदूकची के फ़ायर की आड़ में वीर सैनिक आगे बढ़ने लगे। मौत को ललकारते, वे नदी की ओर रेंगते गए। कुछ लौटे, नायक बनकर, पानी लेकर आए। बच्चों और घायलों की प्यास बुझाई गई।

ब्रेस्त किले के रक्षक शौर्य की जीवंत मिसाल बन गए। उनकी संख्या क्रमशः कम होती गई। उनपर आसमान से बमों की वर्षा की गई, उन्होंने तोपों के सीधे हमले सहे और विस्फोटों की लपटें झेली। फासिस्ट प्रतीक्षा करते रहे कि अब सैनिक आत्मसमर्पण करेंगे, श्वेत ध्वज लहरायेंगे।

किन्तु वह क्षण कभी नहीं आया।

32 दिनों तक संग्राम चला। आख़िरी बचे रक्षक ने प्राचीर पर अपने खंजर से अंकित किया, "मैं मर रहा हूँ, किन्तु आत्मसमर्पण नहीं करूँगा। विदा, मातृभूमि!"

यह सिर्फ़ विदाई नहीं, परंतु एक अटल प्रतिज्ञा भी थी। सैनिकों ने अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण की। उन्होंने शत्रु के सामने सिर नहीं झुकाया।

राष्ट्र ने इन रणबांकुरों का गौरव के साथ स्मरण किया। और तुम, समझदार पाठक, एक क्षण ठहरो। इन अमर शूरवीरों की याद में, तुम भी सिर झुकाकर श्रद्धांजलि अर्पित करो। उनका शौर्य, उनका त्याग ही हमारी स्वाधीनता का आधार है।


Saturday, February 11, 2023

Lecture and Interaction with Russian Language Teachers at Banaras Hindu University

 




I had the pleasure of meeting with Russian language teachers at Banaras Hindu University and delivering a lecture to future Russian language specialists.

I am deeply thankful for the warm reception and wish them all the best!

Monday, March 28, 2022

Discussion on Russia's Geopolitical Concerns - News18 India Panel


 
On March 8, 2022, I participated in a panel discussion on News18 India, featuring Indian defense experts, former Indian ambassadors, and a US representative. I discussed Russia's concerns in the current geopolitical landscape.

You can watch the full recording of the discussion here: https://www.youtube.com/watch?v=pkulGPSpHGs

Wednesday, October 17, 2018

मोकामा के गौतम कश्यप ने रूसी कविता संग्रह का किया हिंदी में अनुवाद, विमोचन नौ को

दैनिक भास्कर/पटना/अक्टूबर 1, 2018

मोकामा के गौतम कश्यप ने रूसी कविता संग्रह का किया हिंदी में अनुवाद, विमोचन नौ को 

सीमित संसाधनों के बीच बिहार से निकली सैकड़ों प्रतिभाएं हर वर्ष अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम रोशन करती हैं। बिहार के मोकामा के रहने वाले गौतम कश्यप अपनी उत्कृष्ट अनुवाद विधा से भारत और रूस के बीच साहित्य सेतु बनाने का काम कर रहे हैं। गौतम द्वारा रूसी भाषा से हिंदी में अनुदित कविता संग्रह आनंद का उजियारा का विमोचन 9 अक्टूबर, 2018 को हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में होने जा रहा है। उन्होंने निकलाय रेरिख को समर्पित कविता संग्रह का हिंदी में अनुवाद किया है। कविता संग्रह में ओल्गा स्लेपोवा द्वारा रचित कविताएं शामिल हैं।

रूसी-हिंदी अनुवादक के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान बना चुके गौतम कश्यप का मानना है कि साहित्य के जरिए ही दुनिया को सेतुबंध किया जा सकता है। हर देश और भाषा में उत्कृष्ट साहित्य मौजूद है लेकिन एक-दूसरे की भाषा को न समझ पाने के कारण दुनिया उससे अनभिज्ञ रह जाती है। भारत में अनुवाद एक महत्वपूर्ण रोजगारमूलक क्षेत्र है, इसलिए वे नई पीढ़ी को विदेशी भाषाओं से जुड़ने के लिए प्रेरित करते हैं। 

नि:शुल्क कार्यशाला में सिखाते हैं अनुवाद 

गौतम कश्यप युवाओं को लीक से हटकर सोचने की सलाह देते हैं। इसी क्रम में वे जब भी मोकामा आते हैं तब मोकामा में नि:शुल्क विदेशी भाषा प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजित कर सैकड़ों बच्चों को लाभान्वित करते हैं। इसके अतिरिक्त विदेशी भाषा सीखने के इच्छुक बच्चों को सोशल मीडिया के माध्यम से गाइड करते हैं। मोकामा के मोर गांव निवासी गौतम कश्यप पिछले कई वर्षों से रूसी और हिंदी का अनुवाद कर रहे हैं। अपने शैक्षणिक कार्यों के सिलसिले वे रूस का दौरा भी कर चुके हैं। वहीं भारत में रूस से संबंधित होने वाले विभिन्न आयोजनों में वे अक्सर द्विभाषिए / अनुवादक के रूप में अपनी सेवाएं देते रहते हैं। 1990 और 2000 के दशक में बिहार में अपनी पढ़ाई करने वाले गौतम अत्यंत विषम परिस्थितियों का सामना करते रहे। झाझा स्थित सरकारी हाई स्कूल से 10वीं की और बाद में बीएचयू, दिल्ली यूनिवर्सिटी, इग्रू, भारतीय यात्रा और पर्यटन प्रबंधन संस्थान (आईआईटीटीएम), नई दिल्ली, भारतीय केंद्रीय भाषा संस्थान आदि से अपनी उच्च शिक्षा पूरी की।

Book Release : Aanand ka Ujiyara of Olga Slepova, translated into Hindi by Gautam Kashyap


ब्रेस्त किले की शौर्यगाथा - सिरगेई अलिक्स्येफ़/Брестская крепость: Сергей Алексеев/

ब्रेस्त किले की शौर्यगाथा - सिरगेई अलिक्स्येफ़ मूल रूसी से अनुवाद गौतम कश्यप सीमा पर अटल खड़ा है ब्रेस्त का किला, एक प्राचीन गढ़, जिसके पत्थ...